दर्द

दर्द को दवा बना लिया मैंने
दुख को साथी बना लिया है मैंने
अब तो आदत सी बन गई है
दुखों में रहने की मुझे।

अब तो रहते हैं हमेशा
मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट
दुखों को जाम बनाकर
पी लिया है जो मैंने।

अब तो दुख नहीं देते
हमारे आँखों में आँसू आने
दुख को जो अपना
बना लिया है मैंने।

अब तो दुख,
तोड़ता नहीं मुझे
यह निर्माण करता है मेरा
दुख को हमसफ़र
बना लिया है जो मैंने।

अब तो सुख के चंद लम्हों
से डर लगता है मुझे
दुख में जीने की आदत
पाल लिया है जो मैंने।

अब तो लाख मुसिबतें
आती हैं मुझपर
अडिग हो खड़ा रहता हूँ मैं
दुख को जीवन का हिस्सा
बना लिया है जो मैंने।
       प्रियदर्शन कुमार

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