विकास ! तुम कहां हो

विकास !
तुम कहां हो ?
मैं सब जगह
तुम्हें ढ़ूंढ़ रहा हूँ,
शहरों में गांवो में
गलियों में मुहल्लों में
नहीं पता, कहीं भी तुम्हारा
कितने बरस बीत गए
अगर कहीँ हो, तो बताओं
पेपर पत्रिका टीवी रेडियो
के जरिए भी तुमसे सम्पर्क
करने की कोशिश की।
हर चौराहे पर जा जाकर
लोगों से पूछा।
क्या किसी ने 'विकास' को देखा है?
हर तरफ से एक ही
आवाज़ आ रही थी- नहीं !
हलांकि 'विकास' को ढ़ूंढ़ने में
'सबका साथ मिला'
लेकिन 'विकास' किसी को भी नहीं मिला।
तब अचानक एक दिन एक सज्जन मिला
जिनका नाम रूहूल अमीन था।
मुझे परेशानी में देखकर
उन्होंने मुझसे पूछा-
भाई क्यों परेशान हो ?
मुझे बताओ
तब मैंने उनसे पूछा कि
मेरे विकास को आपने कहीं देखा है?
उन्होंने बोला हां हां; मैंने देखा है।
मैंने पूछा कहां?
तब उन्होंने बताया "शाह" के घर में।
अब जाकर मेरे क्लेजे में ठंडक पहुंची।
                              प्रियदर्शन कुमार

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