बापू

बापू !
काश ! तुम जीवित होते,
लेकिन, अच्छा है तुम नहीं हो,
भारत की यह दूर्दशा
तुमसे देखी नहीं जाती।
जिस भारत का स्वप्न
तुमने कभी देखा था,
वह नहीं रहा।
जिस राम-राज्य की कल्पना
तुमने कभी किया था,
वह रावण राज में बदल गया
हर जगह अशांति ही अशांति है।
जिस बोलने की आजादी के नामपर
तूने एक विशाल आंदोलन खड़ा कर दिया था,
आज वहीं हमसे छीना जा रहा है।
हर जगह अपराधियों का तांडव,
जाति-धर्म-मजहब के नामपर खून-खराबा,
अब रोज की बात हो गई है।
आधी आबादी अब भी
भूखे सोने को मजबूर है।
जिस ट्रस्टीशिप का नारा दिया था
वह आज खत्म हो गया है।
जोंक की तरह चिपक कर
आम जनता का खून चूसने में
पूंजीपति लगे हुए हैं
बापू !
हम शर्मिंदा हैं
कि तुम्हारे सपनों के भारत का
निर्माण नहीं कर पाया
तुम्हारे जन्मदिन पर
देने के लिए हमारे पास
आंसू के अलावा और कुछ नहीं है।
                        प्रियदर्शन कुमार

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