लोकतंत्र के प्रहरी

दीन हीन कर्महीन
हमारे लोकतंत्र के प्रहरी
चाह है विश्व गुरु बनने की
लक्षण एक नहीं मानवता की
गाते हैं विकास की नई-नई गाथा
सुनो भाई इनके शासन में
महिलाओं की करुण गाथा
लूटते हैं राह चलते महिलाओं की अस्मत
लज्जा नहीं  आती है तुम्हें बेल्लज
देते हो  बेटी बचाओ बेटी पढाओ के नारे
बचा नहीं पाते  बेटी के आबरू और इज्जत
लज्जा नहीं आई तुम्हें
बहन-बेटियों पर लाठियां चलवाने में
क्या यहीं दंभ भरते हो जनमानस के आगे
बेखौफ घूम रहे हैं हवस के सौदागर
तुम दोष निकालते हो बेटियों के उपर
खुले आम कर रहे हैं तुम्हारे गुंडे तांडव
अनुशासन की सीख देते हो लड़कियों के उपर
उम्मीद भी कैसे की जा सकती है तुमसे
जो खुद की पत्नी को कर दिया है
उसे उसके अधिकार से वंचित
वो क्या समझे
दूसरों की बहन-बेटियों इज्जत
महिलाओं की आबरू  बचाने की खातिर
भीम ने चिर दिया था दुशासन का सीना
तुझसे मैं क्या अपेक्षा करूं
बेशर्म  बेहाया कुत्ते और कमीना
कहाँ गया तुम्हारा तोता-मैना पुलिस प्रशासन
है  हिम्मत तो चिर दो आज के दुशासन का सीना
ताकि भविष्य में आँख उठाकर
न देख सके बहन-बेटियों को
रख लो कुल की मान-मर्यादा का।
                       प्रियदर्शन कुमार

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