जिंदगी की किताब

जिंदगी की किताब को
पढ़ना है नहीं आसां
कभी हंसाती है कभी रुलाती है
ऐ जिंदगी
तेरी अजब कहानी है
तू गजब का खेल खेलाती  है
है इसमें इतनी गुत्थियां
कि कभी सुलझती ही नहीं
जितनी जानने की कोशिश करो
उतनी ही पहेली बनती
चली जाती है
न जाने कितनी गांठें पड़ी है
जिंदगी खत्म हो जाती है
लेकिन कभी खुलती नहीं
लड़नी पड़ती है लड़ाई
हर कदम-कदम पर
मर्जी चलती नहीं
इसपर एक भी
लाख कोशिश करो
ये हाथ आती नहीं
कभी ये मुझे झेलता है
कभी मैं इसे झेलता हूँ
कभी हार मिलती है
तो कभी जीत मिलती है
इस तरह लड़ते-लड़ते
खत्म हो जाती है जिंदगी
जिंदगी की गणित को समझना
है ये आसां नहीं।
प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

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