सरकार
काव्य संख्या-151
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तूने बहुत दिखाए
अपने सत्ता का दंभ,
तूने सत्ते की आर में
खूब की है मनमानी,
तूने बहुत फैलाएं हैं द्वैश
खूब खेल खेले हैं तूने
साम्प्रदायिकता की,
कभी गाय तो कभी
कभी घर वापसी की
कभी जात-पात की तो
कभी राम की राजनीति की,
विकास के मुद्दे से
ध्यान भटकाकर
वर्षों से उलझाए रहे तूने
भोली-भाली जनता को,
तुम्हारे उलझनों में
अब न आएगी जनता,
तुम्हारे इन झांसों में
कभी न फंसेगी जनता,
बहुत किए हैं जनता के साथ
तूने भावनात्मक अत्याचार,
अब जनता भी समझ गई है
तुम्हारी बांटो और राज करो की नीति को,
बहुत पढ़ और सुन लिया है
तुम्हारे विकास की यह गाथा,
भर गया है मन जनता का
तुमसे और तुम्हारी नीतियों से,
जनता ही तय करेगी
तुम्हारी अब नियति,
अब हो गई है शुरू तुम्हारी उल्टी गिनती
अब बज चुकी है रणभेरी
अब होगी आर या पार की लड़ाई।
प्रियदर्शन कुमार
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