हे मानव

हे मानव !
तुम्हीं बताओं
तुम सभ्य हुए कहां?
जब तुम्हारे अंदर
चेतना होकर भी
चेतना से शून्य हो
विचारयुक्त होकर भी
विचार से शून्य हो
सोचन-शक्ति होने के बाद भी
सोचने की तुम्हारी
क्षमता क्षीण हो गई हो
तुम्हीं बताओं
तुम सभ्य हुए कहां?
जब तुम्हारे अंदर दूसरों के प्रति
न अनुराग का भाव है
औैर न सम्मान का
जब तुम्हारे अंदर
दूसरों के प्रति न संवेदना है
और न सहानुभूति है
अब तुम्हीं बताओं
तुम सभ्य हुए कहां?
जब तुम न किसी के
आँसू पोछ सकते हो
न संवेदना के दो शब्द
बोल सकते हो
न तुम गिरते हुए को
सम्भाल सकते हो
अब तुम्हीं बताओं
तुम सभ्य हुए कहां?
जब तुम्हारे मन में
दूसरों के प्रति
घृणा वैर भाव है
तुम हमेशा दूसरों का
अहित सोचते हो
दूसरोँ को डसने के लिए
हमेशा तैयार रहते हो
सांप से ज्यादा जहरीला हो
हे मानव !
तुम्हीं बताओं
तुम सभ्य हुए कहां?
     प्रियदर्शन कुमार

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