छोटी-सी जिंदगी

काव्य संख्या-154
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इस छोटी-सी जिंदगी की
कथा कैसे मैं आज कहूं
क्या लिखूं और क्या छोड़ू
क्या भूला और क्या याद करूं
कहां से शुरू और कहां खत्म करूं
किसे अपना और किसे पराया कहूं
किसी ने दुख दिया तो किसी ने उबारा
कहीं सम्मान मिला तो कहीं अपमान
कभी साथ मिला तो कभी तन्हाई मिली
कभी प्यार मिला तो कभी दुत्कार मिला
सामने में हंस-हंस के बातें करते हैं
पीठ पीछे मेरी खिल्लियां उड़ाते हैं
कोई पागल तो कोई मुर्ख समझते हैं
खुद ही रूठता हूँ और खुद को मनाता हूँ
लोगों की बातें सुनता हूँ फिर भी
हमेशा मुस्कुराता रहता हूँ
अब तो आदत-सी बन गई है
बस यहीं सोचकर चलता हूँ
जिंदगी तो जीना है, जी रहा हूँ मैं
न कोई गिला है, और
न कोई शिकवा किसी से
दुनिया की भीड़ में,
मैं खुद को अकेला पाता हूँ
यह बदकिस्मती है मेरी
या है फिर मेरी नियति
इस छोटी-सी जिंदगी की
व्यथा कैसे मैं आज कहूं
क्या लिखूं और क्या छोड़ू
क्या भूला और क्या याद करूं।
                   प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

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