जिंदगी

ऐ जिंदगी
तू गमों के बारात को लेकर
मेरे दरवाजे पर आए हो
मैं नाराज न होने दूँगा तुम्हें
मैं खाली न लौटाउँगा तुम्हें
स्वागत है तुम्हारा
इस गरीब के दरवाजे पर
अमीर दिल के साथ
लो, मैं वर लेता हूँ
तुम्हारे सारे गमों को
न मेरी आँखें नम होंगी
न मैं मायूस होउंगा
वैसे भी,
अब आदत-सी पड़ गई है
वेदना में जीने की मुझे
तू खुश रह
इससे ज्यादा नहीं चाहिए
और कुछ भी मुझे
तूझे जो था देने के लिए
तूने मुझे दिया
मैं सहर्ष स्वीकार करता हूँ।
              प्रियदर्शन कुमार

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